Sunday, May 12, 2019

कथनी और करनी में अंतर

* पण्डित की कहानी *
कहानी और करनी में अंतर 
✍️Edited by - पं आदर्श पांडेय शिवम्
                        -@sp
            श्री लक्ष्मीप्रपनाजीवार स्वामी जी महाराज
एक पंण्डित एक नदी किनारे रहता था। वह
इतना ज्ञानी था कि दूर और पास के कई पण्डित
उससे सलाह लेने आते थे। वे पण्डित पर आदर और सम्मान
की वर्षा करते थे। दुसरे किनारे पर एक
लक्ष्मी नाम की दूध
वाली रहती थी। उसका दिन
व्यस्त रहता था। वह सुबह जल्दी उठकर दूध
निकालती, अपने वृद्ध पिता के लिए भोजन
पकाती और उसके बाद दूध बाँटने बाहर निकल
पड़ती।
उसे एक नाव पर नदी पार
करनी पड़ती थी। एक दिन
पण्डित उसका इंतजार कर रहा था। आखिर वह आई तब वह
बोला-आह, लक्ष्मी तुम अन्त में आ
ही गई। मैं तुमाहरा प्रातः काल से इन्तजार कर
रहा था। मुझे कल से दूध सूर्योदय से पहले चाहिए।
अगली सुबह लक्ष्मी भोर शुरू होते
ही किनारे दौडी लेकिन नाव वाला देर
सुबह तक नहीं आया। लक्ष्मी ने नाव
वाले से जल्दी करने को का आग्रह किया क्योंकि उसे
जानकारी थी कि पण्डित दूध के लिए
इंतजार कर रहा होगा। पहुँचने पर पंडित ने शिकायत
की कि तुम दुबारा देर से अई ,क्या हुआ।
लक्ष्मी माफी माँगते हुए
बोली कि पण्डित जी, नाव वाला देर से
आया।
उस दिन पण्डित का मिजाज खराब था। वह चिल्लाया- बहाना मत
सुनाओ। तुमने मेरी इच्छा का आनादर करने
की हिम्मत कैसे की? तुम्हें
नहीं मालूम कि मैं कितना महान हूँ?
लक्ष्मी ने रोना शुरू किया लेकिन पंडित
शेखी बघारता रहा। क्या तुम
जानती हो मैं कितना विद्वान् हूँ? तुम केवल दूध
वाली हो, मैं सारी चीजें
जानता हूँ। वह नदी जीवन
नदी है। लोग हरि का नाम लेकर पार कर लेतें हैं।
लक्ष्मी ने पण्डित के शब्दों को बहुत
गंभीरता से लिया और अगले दिन समय पर आने
का वादा कर वहाँ से चली गयी। उसने
सोचा कि मैं पण्डित जी के कहे के अनुसार
हरि का नाम लेकर नदी पार कर
सकती हूँ। यह बात पण्डित जी ने
पहले क्यों नहीं कही।
अगले दिन लक्ष्मी, पण्डित के घर सूर्योदय से
पहले पहुँच गयी। पण्डित उसे देखकर
आश्चर्यचकित था क्योंकि उसने नाव वाले
को तो देखा ही नहीं। पण्डित
जी ने पूछा, आज तुमने नदी कैसे पार
की। लक्ष्मी मुस्कराई और
बोली ,आपही ने तो मुझे
रास्ता बताया था कि हरी का नाम लो और
नदी पार कर लो, तो मैंने वैसा ही किया।
" यह असम्भव है", पण्डित चिल्लाया और उसे से
नदी पार करने के लिए कहा। लक्ष्मी ने
दुबारा बगैर किसी मुश्किल के हरि का नाम गाते हुए
नदी पार कर ली। ऐसा करते वह
बिलकुल सुखी थी। पण्डित ने
हरि का नाम लेकर यही करने
की कोशिश की लेकिन उसने जैसे
ही अपने कपडे भीगने से बचाने
की कोशिश की वह नदी में
गिर पड़ा।
लक्ष्मी चकित थी। वह
बोली," वह पंडित जी, आप
हरि का बिलकुल चिन्तन नहीं कर रहे थे। आप
तो अपनी धोती के बारे में सोचने में व्यस्त
थे इसलिए काम नहीं बना। पण्डित,
लक्ष्मी की सच्ची भक्ति सेआश्चर्यचकित
हो गया और उसने माना कि उसका विश्वास, उसके अपने
खाली ज्ञान से ज्यादा शक्तिशाली था।
उसने सच्चाई से लक्ष्मी को आशीर्वाद
दिया।
अध्यात्मिक भाव
शिव बाबा उन लोगों को पण्डित कहते हैं जो ज्ञान को केवल
दोहराता रहते हैं लेकिन जीवन में
नहीं उतारते। हमें पण्डित की तरह
नहीं होना चाहिए। दूसरों को जो कहते हैं पहले
खुद वैसा बनना चाहिए। कथनी और
करनी में फर्क नहीं होना चाहिए।

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