Wednesday, May 29, 2019

हनुमान चालीसा दृत्या पार्ट

🍎🍎जय श्री सीताराम जी 🍎🍎
⚅⚅♻♻⚅⚅♻♻⚅⚅

(पिछली पोस्ट से आगे)

महावीर     विक्रम     बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

        श्री हनुमान जी वीर नहीं महावीर हैं। वज्र की तरह जिनकी दिव्य देह है। उन बजरंगबली में अमित विक्रम, पराक्रम है और वे कुमति का हरण करने वाले तथा सुमति का समर्थन करने वाले हैं।

        कुमति को हटाना और सुमति को बढ़ाना श्री हनुमान जी का ही कार्य है । पर आप पूछेंगे कि यह सुमति और कुमति कहाँ रहती हैं? तो उत्तर है -- विभीषण जी ने कहा है।

सुमति कुमति सबके उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।।

          सुमति और कुमति सबके हृदय में रहते हैं। यह अद्भुत संकेत है । किसी किसी के हृदय में रहते हों, ऐसा नहीं है। सबके उर रहहीं और श्री तुलसीदास जी कहते हैं --- मेरे द्वारा जो यह कहा गया है, यही वेद, शास्त्र और अनुभवी पुरुषों ने कहा है। नाथ पुरान निगम अस कहहीं। यह श्रुति सम्मत है, पुराण सम्मत है । सबके हृदय में सुमति और कुमति का निवास है।

        यह कह देने से एक लाभ यह होता है कि व्यक्ति हीनभाव से नहीं भरता कि मुझमें भी कुमति आ गई । वह सोचता है कि सबके साथ ऐसा होता है तो मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । एक तो यह लाभ, और दूसरा, हीन भाव तो रहेगा पर अभिमान नहीं होगा कि कुमति दूसरे में ही रहती होगी, मुझमें नहीं रहती। और कहा जा रहा है -- सबके उर रहहीं। इसीलिए यह सुमति और कुमति सबके हृदय में हैं। इस दृष्टि से सब समान हैं, पर थोड़ा और  सूक्ष्म ढंग से हम लोग विवेचन करें कि सबके हृदय में सुमति और कुमति रहते हैं। तो कभी सुमति प्रबल होती होगी, कभी कुमति प्रबल होती होगी। जैसे कभी रात आती है कभी दिन आता है ।

काल कर्म वश होहिं गोसाईं।
बरबस रात दिवस की नाईं।।

         तो हम यह कैसे जानें कि अभी हमारे हृदय में कुमति प्रधान  है या सुमति प्रधान है। यह जानें कैसे? यह तो ठीक है कि सुमति कुमति सबके हृदय में रहते हैं, पर हम जानेंगे कैसे?  बड़ा सुंदर उत्तर है। विभीषण जी ने कहा -- रावण !

तव उर कुमति बसी विपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।

         कुमति हमारे हृदय में कब प्रधान रूप लेकर आ गई है? कैसे जानेंगे? तो इसका उत्तर है  कि अपने हितैषी जब शत्रु लगने लगें और अनहित करने वाले मित्र लगने लगें -- हित अनहित मानहु रिपु प्रीता। जो हमारे हित की बात कह रहे हैं, जो हमारे हितैषी हैं, वे हमें शत्रु लगने लगें। और जो हमारे जीवन को नष्ट करने वाले हैं वे हमें प्रिय लगने लगें तो समझ लो कुमति आ गई ।

         अब ऐसी दशा में आदमी सही निर्णय नहीं कर पाता। वह अपने साधना पथ से विमुख हो जाता है, भटक जाता है । तो ऐसे भटकाव के क्षण अगर जीवन में आये,  तो किसका आश्रय लें?

         कुमति आ गई और कुमति के कारण हम समझकर भी नहीं समझ पाते ,क्योंकि प्रभाव कुमति का है । हमारे गुरुदेव कहते थे कि --

जब आते अच्छे दिन तो अच्छी बात सुहाती।
नाहीं तो समझाने पर भी नहीं समझ में आती।।

         अच्छा बोलो, विभीषण जी ने कितना समझाया रावण को? अंत में उन्होंने कहा कि मेरा उपदेश तुम पर काम नहीं कर रहा। कहा क्यों?  कहा -- औषधि रोग को मिटा सकती है, मौत को नहीं । तो यह उपदेश की औषधि काम तो करती है, लेकिन औषधि काम करती है रोग पर, मृत्यु पर नहीं ।

हित मत तोहि न लागत कैसे।
काल विवश कहँ भेषज जैसे।।

        जो काल के वश में है,  उस पर दवा काम नहीं करती। इसी तरह कुमति का कुप्रभाव कुसमय के कारण जिसके मन पर हो, उस पर उपदेश की औषधि काम नहीं करती।

          रावण को समझाने वाले हार गये, क्योंकि- - तव उर कुमति बसी बिपरीता। तब हम लोगों को निराशा हाथ लगती है कि यदि कुमति प्रबल हो गई हमारे हृदय में,  तब तो हमें कोई भी सुखी नहीं कर सकेगा।

           पर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि निश्चिंत रहो, अगर ऐसी दशा भी आ जाये तो एक हैं जिनका आश्रय लेने से कुमति हट जायेगी और सुमति की स्थापना हो जायेगी। कहा -- ऐसा पराक्रम किसका है? तब कहा ---

महावीर    विक्रम     बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

         वे कुमति का निवारण करके सुमति की स्थापना कर देते हैं। तो यह असम्भव काम हनुमान जी के द्वारा सम्भव हो जाता है? -•••••हाँ।

(क्रमशः)
(स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज)

Monday, May 13, 2019

अत्याचार और ब्राम्हण में संबंध

ब्राम्हण और अत्याचार
Edited by ✍️:– saurabh pandey


 त्रेता युग में क्षत्रियों का शासन था ! महाभारत काल मे यादव क्षत्रियों का शासन था !
उसके बाद दलित . मौर्य और बौद्धो का राज था !
उसके बाद 1200 साल मुसलमान बादशाह (अरबी लुटेरों) का राज था
फिर 300 साल अंग्रेज राज था,
पिछले 67 वर्षों से अंबेडकर का संविधान राजकाज चला रहा है़।

लेकिन फिर भी सब पर अत्याचार ब्राहमणों द्वारा किया गया... अमेजिंग ।

मूर्खता की कोई सीमा नही!!

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ब्राह्मण

ब्राह्मणों को गाली देना, कोसना, उन्हें कर्मकांडी, पाखंडी, लालची, भ्रष्ट, ढोंगी जैसे विशेषणों के द्वारा अपमानित करना आजकल ट्रेंड में है। कुछ लोग ब्राह्मणों को सबक सिखाना चाहते हैं, कुछ उनसे तलवे चटवाना चाहते हैं, कुछ स्वघोषित तरीके से उनके दामाद बन जाना चाहते हैं, कुछ उन्हें मंदिरों से बाहर कर देना चाहते हैं.. वगैरह-वगैरह।

कुछ कथित रूप से पिछड़े लोगों को लगता है कि ब्राह्मणों की वजह से ही वो 'पिछड़े' रह गये, दलितों की अपनी दलीलें हैं, कभी-कभी अन्य जातियों के लोगों के श्रीमुख से भी इस तरह की बातें सुनने को मिल जाती हैं। आमतौर से ये धारणा बनाई जा रही है कि ब्राह्मणों की वजह से समाज पिछड़ा रह गया, लोग अशिक्षित रह गये, समाज जातियों में बंट गया, देश में अंधविश्वासों को बढ़ावा मिला.. वगैरह-वगैरह।

आज, ऐसे सभी माननीयों को हृदय से धन्यवाद देते हुए मैं आपको जवाब दे रहा हूं... और याद रहे- ये एक ब्राह्मण का जवाब है... इस वैधानिक चेतावनी के साथ कि मैं किसी प्रकार की जातीय श्रेष्ठता में विश्वास नहीं रखता।       

लेकिन आप जान लीजिये- वो कौटिल्य जिसने संपूर्ण मगध साम्राज्य को संकटों से मुक्ति दिलाई, देश में जनहितैषी सरकार की स्थापना कराई, भारत की सीमाओं को ईरान तक पहुंचा दिया और कालजयी ग्रन्थ 'अर्थशास्त्र' की रचना की (जिसे आज पूरी दुनिया पढ़ रही है) वो कौटिल्य ब्राह्मण थे।

आदि शंकराचार्य जिन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को एकता के सूत्र में बांधने के प्रयास किये, 8वीं सदी में ही पूरे देश का भ्रमण किया, विभिन्न विचारधाराओं वाले तत्कालीन विद्वानों-मनीषियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें हराया, देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना कर हर हिंदू के लिए चार धाम की यात्रा का विधान किया, जिससे आप इस देश को समझ सकें। वो शंकराचार्य ब्राह्मण थे।

आज कर्नाटक के जिन लिंगायतों को कांग्रेसी हिंदूओं से अलग करना चाहतें हैं, उनके गुरु और लिंगायत के संस्थापक- बसव- भी ब्राह्मण थे।

भारत में सामाजिक-वैचारिक उत्थान, विभिन्न जातियों की समानता, छुआछूत-भेदभाव के खिलाफ समाज को एक करने वाले भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत रामानंद, (जो केवल कबीर के ही नहीं बल्कि संत रैदास के भी गुरु थे) ब्राह्मण थे। आज दिल्ली में जिस भव्य अक्षरधाम मंदिर के दर्शन करके दलितों समेत सभी जातियों के लोग खुद को धन्य मानते हैं, उस मंदिर की स्थापना करने वाला स्वामीनारायण संप्रदाय है जिसके जनक घनश्याम पांडेय भी ब्राह्मण थे।

वक्त के अलग-अलग कालखंड में हिंदू समाज में व्याप्त हो चुकी बुराईयों को दूर करने के लिए 'आर्य समाज' व 'ब्रह्म समाज' के रूप में जो दो बड़े आंदोलन देश में खड़े हुए, इन दोनों के ही जनक क्रमश: स्वामी दयानंद सरस्वती व राजा राममोहन राय (जिन्होंने हमें सती प्रथा से मुक्ति दिलाई) ब्राह्मण थे। भारत में विधवा विवाह की शुरुआत कराने वाले ईश्वरचंद्र विद्यासागर भी ब्राह्मण थे। इन सभी संतों ने जाति-पांति, छुआछूत, भेदभाव के खिलाफ समाज को जागरुक करने में अपना जीवन खपा दिया- लेकिन समाज नहीं सुधरा।
 
क्षत्रिय वंश के राजा श्रीराम की महिमा को 'रामचरित मानस' के जरिये घर-घर में पहुंचाने वाले तुलसीदास और ब्रज क्षेत्र में यदुवंशी राजा श्रीकृष्ण की भक्ति की लहर पैदा करने वाले वल्लभाचार्य भी ब्राह्मण थे। ये भी याद रखिये- मंदिरों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था, जैसा कि आप लोग कहते हैं, फिर भी भारत में भगवान परशुराम (ब्राह्मण) के मंदिर सामान्यत: नहीं मिलते। ये है ब्राह्मणों  की भावना।

विदेशी आधिपत्य के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह का बिगुल बजाने संन्यासियों में से अधिकांश लोग ब्राह्मण थे। अंग्रेजों की तोपों के सामने सीना तानने वाले मंगल पांडेय, रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज अफसरों के लिए दहशत का पर्याय बन चुके चंद्रशेखर आजाद, फांसी के फंदे पर झूलने वाले राजगुरु - ये सभी ब्राह्मण थे।

वंदेमातरम जैसी कालजयी रचना से पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पैदा करने वाले बंकिमचंद्र चटर्जी, जन-गण-मन के रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर ब्राह्मण, देश के पहले आईएएस (तत्कालीन ICS) सत्येंद्रनाथ टौगोर भी ब्राह्मण। स्वतंत्रता आंदोलन के नायक गोपालकृष्ण गोखले (गांधी जी के गुरु), बाल गंगाधर तिलक, राजगोपालाचारी ब्राह्मण। भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में अटल बिहारी वाजपेयी भी ब्राह्मण।
       
नेहरु सरकार से त्यागपत्र देने वाले पहले मंत्री जिन्होंने पद की बजाय जनहित के लिए संघर्ष का रास्ता चुना और कश्मीर के सवाल पर अपने प्राणों की आहुति दी- वो डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी ब्राह्मण। बीजेपी के सबसे बड़े सिद्धांतकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय, बीजेपी नेता  मुरली मनोहर जोशी- ये सभी ब्राह्मण।

हिंदू समाज की एकता, जातिविहीन समाज की स्थापना और सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना के लिए खड़ा हुआ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- की नींव एक गरीब ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले पूज्य डॉ. हेडगेवार जी ने डाली थी। उन्होंने अपने खून का कतरा-कतरा हिंदूओं को ताकत देने और उन्हें एकसूत्र में पिरोने में खपा दिया, केवल ब्राह्मणों की चिंता नहीं की। संघ के दूसरे सरसंघचालक- डॉ. गोलवलकर- जिन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज को ताकत देने के लिए सारा जीवन समर्पित कर दिया- वो भी ब्राह्मण।
यही नहीं, देश में पहली कम्यूनिस्ट सरकार केरल में बनाने वाले नंबूदरीपाद समेत मार्क्सवादी आंदोलन के कई प्रमुख रणनीतिकार ब्राह्मण ही थे। समकालीन नेताओं की बात करें तो तमिलनाडु में जयललिता ब्राह्मण थीं, 

मायावती, जिन्होंने 'तिलक-तराजू और तलावर, इनको मारो जूते चार' जैसा अपमानजनक नारा बार-बार लगवाया, उन पर जब लखनऊ के गेस्ट हाउस में सपा के गुंडों ने जानलेवा हमला किया, उन्हें मारा-पीटा, उनके कपड़े फाड़े, और शायद उनकी हत्या करने वाले थे, उस समय जान पर खेलकर उन गुंडों से लड़ने वाले और मायावती को सुरक्षित वहां से निकालने वाले स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी ब्राह्मण थे।

जिस लता मंगेशकर की आवाज को ये देश सम्मोहित होकर सुनता रहा और जिस सचिन तेंदुलकर के हर शॉट पर प्रत्येक जाति का युवा ताली बजाकर खुश होता रहा - ये दोनों ही ब्राह्मण।

फिर भी, जिन्हें लगता है कि ब्राह्मण केवल मंदिर में घंटा बजाना जानता है- वो ये भी जान लें कि भारत के इतिहास का सबसे महान घुड़सवार योद्धा और सेनानायक- जो 20 साल के अपने राजनीतिक जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा, जिसने मुस्लिम शासकों के आंतक से कराहते देश में भगवा पताकाओं को चारों दिशाओं में लहरा दिया और जिसे बाजीराव-मस्तानी फिल्म में देखकर आपने भी तालियां ठोंकी होंगी, - वो बाजीराव बल्लाल भी ब्राह्मण था। 

तो ब्राह्मणों को कोसने वाले इतिहास को ठीक से पढ़ लो.. शायद तुमसे भी पहले तुम्हारे हक के लिए अगर कोई लड़ा, अगर किसी ने संघर्ष किया, अगर किसी ने बलिदान दिया- तो वो ब्राह्मण ही था.

ब्राम्हण को सम्मान दो


सम्मान
Edited by_✍️saurabh pandey

हमारे गुरु जी ने कहा हे?

बनिया धन का भूखा होता है।
क्षत्रिय खून का प्यासा होता है।
दलित अन्न का भूखा होता है।
पर ब्राम्हण?
साहब ब्राम्हण सम्मान का भूखा होता है।
ब्राम्हण को सम्मान दे दो वो तुम्हारे लिऐ
जान देने को तैयार हो जाऐगा।
अरे दुनिया वालो आजमाकर
तो देखो हमारी दोस्ती को।
मुसलमान अशफाक उल्ला खान बनकर हाथ
बढ़ाता है,हम बिस्मिल बनकर गले लगा लेते है।
क्षत्रिय चंद्रगुप्त बनकर पैर छू लेता है,हम
चाणक्य बनकर पूरा भारत जितवा देते है।
सिख भगत सिह बनकर हमारे पास आता है।
हम चंद्रशेखर आजाद बनकर उसे बेखौफ
जीना सिखा देते है।
कोई वैश्य गाधी बनकर हमे गुरु मान लेता है हम
गोपाल कृष्ण गोखले बनकर उसे
महात्मा बना देते है।
और
कोई शूद्र शबरी बनकर हमसे वर मागता है,
तो हम उसे भगवान से मिलवा देते है।
अरे एक बार सम्मान तो देकर देखो हमें...........
........ फर्ज न अदा करे तो कहना
जय जय राम!!जय जय परशुराम!!

--  पुराणों में कहा गया है -

     विप्राणां यत्र पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।

  जिस स्थान पर ब्राह्मणों का पूजन हो वंहा देवता भी निवास करते हैं अन्यथा ब्राह्मणों के सम्मान के बिना देवालय भी शून्य हो जाते हैं । इसलिए

   ब्राह्मणातिक्रमो नास्ति विप्रा वेद विवर्जिताः ।।

  श्री कृष्ण ने कहा - ब्राह्मण यदि वेद से हीन भी तब पर भी उसका अपमान नही करना चाहिए । क्योंकि तुलसी का पत्ता क्या छोटा क्या बड़ा वह हर अवस्था में कल्याण ही करता है ।

  ब्राह्मणोंस्य मुखमासिद्......

   वेदों ने कहा है की ब्राह्मण विराट पुरुष भगवान के मुख में निवास करते हैं इनके मुख से निकले हर शब्द भगवान का ही शब्द है, जैसा की स्वयं भगवान् ने कहा है की

   विप्र प्रसादात् धरणी धरोहम
   विप्र प्रसादात् कमला वरोहम
   विप्र प्रसादात्अजिता$जितोहम
   विप्र प्रसादात् मम् राम नामम् ।।

   ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मैंने धरती को धारण कर रखा है अन्यथा इतना भार कोई अन्य पुरुष कैसे उठा सकता है, इन्ही के आशीर्वाद से नारायण हो कर मैंने लक्ष्मी को वरदान में प्राप्त किया है, इन्ही के आशीर्वाद से मैं हर युद्ध भी जीत गया और ब्राह्मणों के आशीर्वाद से ही मेरा नाम "राम" अमर हुआ है, अतः ब्राह्मण सर्व पूज्यनीय है । और ब्राह्मणों का अपमान ही कलियुग में पाप की वृद्धि का मुख्य कारण है ।

  - किसी में कमी निकालने की अपेक्षा किसी में से कमी निकालना ही ब्राह्मण का धर्म है, 

             
समस्त ब्राह्मण सम्प्रदाय को समर्पित🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

कर्म_ही_दौलत_से_बड़े_हैं। Pravachan

-- #कर्म_ही_दौलत_से_बड़े_हैं ------
Edited by-आदर्श पांडेय शिवम्

एक बार कर्म और दौलत में बहस हो गई।

दौलत कहती है- मैं बड़ी हूं और किसी को भी‌ कुछ भी बना सकती हूं।

कर्म कहता है- मेरे बिना दौलत किसी भी काम की नहीं है।

दौलत कहती है- चलो! देखते हैं कि कौन बड़ा है।

कर्म भी मान गया और दोनों चल पड़े।

जंगल में एक बहुत ही गरीब आदमी लकड़ी काट रहा था।
दौलत उसके पास गई और एक थैली सोने की मोहरों की उस गरीब आदमी को दी और चली गई।

वो गरीब आदमी बहुत ही खुश हुआ और अपने‌ घर को‌ चल पड़ा।
घर पहुंचा तो घर के गेट का दरवाजा बंद था।
उसने वो थैली दीवार पर रखी और दरवाजा खोलने लगा।
दरवाजा खुलते ही वो अन्दर चला गया और‌ मोहरों की थैली दीवार पर ही भूल गया।

वो मोहरें पड़ोसी ने उठा लीं।

अगले दिन फिर वो गरीब आदमी लकड़ी काटने चला‌ गया।
दौलत फिर उसके पास गई और उसको एक हीरा दिया और चली गई।
उसने हीरा जेब में डाला और चल पड़ा।
रास्ते में उसको बहुत प्यास लगी।
वो एक झरने के किनारे बैठकर पानी पीने लगा,
तो हीरा जेब से निकल कर झरने मे गिर गया और एक मछली के पेट में चला गया।
वो आदमी उदास होकर घर चला गया।

अगले दिन फिर वो लकड़ी काटने चला गया।

अब कर्म ने दौलत से कहा- तुमने दो बार कोशिश की है और अब मैं कोशिश करता हूं।
देखना! कैसे इसके नसीब खुलते हैं।

कर्म ने उस गरीब आदमी को दो पैसे दिए और चला गया।

वो गरीब आदमी बहुत ही खुश हुआ और अपने घर को चल पड़ा।
रास्ते में वो सोचता है कि दाल से तो रोटी रोज‌ ही खाते हैं,
आज मछली से खाते हैं।
उसने बाजार से एक मछली खरीदी और घर जाकर जब मछली काटी तो उसमें से वही हीरा‌ निकला।
हीरा देखकर वो बहुत ही खुश हुआ और चिल्लाने लगा- मिल गया! मिल गया।

उधर उसके पड़ोसी ने सुना और सोचा कि इसे पता चल गया है कि वो मोहरों की थैली मेरे पास‌ है।
उसने फटाफट वो थैली उस आदमी के घर फैंक‌ दी।

अब उस गरीब आदमी को वो थैली भी मिल गई।
वो बहुत ही खुश हुआ और परमात्मा का शुक्र किया।

कर्म जीत गया और दौलत हार गई।

सो हमें भी हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए.......
🙏जय🙏श्री राम जय🙏जरंग बल🙏


जिस मानव में अहंकार होता है वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता: श्री जीयर स्वामी जी

जिस मानव में अहंकार होता है वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता: श्री जीयर स्वामी जी


रोहतास जिले के बिक्रमगंज अनुमंडल अंतर्गत काराकाट प्रखंड क्षेत्र के   संसार  डेहरी गांव में चौथे दिन प्रवचन के दौरान अपने श्री मुख से स्वामी जी महाराज ने   श्रद्धालुओं को प्रवचन के दौरान कहा गया कि मानव को  अहंकार नहीं करना चाहिए | जो मानव थोड़ी थोड़ी बातों  पर अहंकार कर लेता है   वह मानव कदापि  आगे नहीं बढ़ पाता है | अहंकार रूपी जीवन जीने से  कभी भी मानव  आगे की ओर नहीं बढ़ सकता है | उन्होंने श्रद्धालुओं से कहां कि किसी भी मानव को  कोई भी परिस्थिति आ जाए  उस व्यक्ति को कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए | जिस व्यक्ति को अहंकार हो जाता है  तो वह व्यक्ति हमेशा पीछे ही रह जाता है | उसका विकास हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है | इसलिए कहा गया है कि मानव को किसी भी परिस्थिति में किसी को अहंकार नहीं करना चाहिए | क्योंकि श्रीमन नारायण को भोजन विशेष कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं करते हैं |  जिस व्यक्ति में  अहंकार हो जाता है प्रभु श्री हरी वहीं अहंकार को भोजन के रूप में  ग्रहण कर लेते हैं | इसलिए मानव को कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए | उन्होंने कहा कि अनीति  रू प  से कमाया हुआ धन   कभी भी किसी भी मानव के पास  सही रूप से नहीं टिक पाती है | जो  मानव नीति रूप से   संपति का  उपार्जन  करता है | वहीं मानव  सुखी रूप से जीवन को व्यतीत करता है |
Jai shri Lakshmi Narayana

Sunday, May 12, 2019

कैसे बने भैरव बाबा काशी के कोतवाल, जानिए पूरी कहानी




कैसे बने भैरव बाबा काशी के कोतवाल, जानिए पूरी कहानी

1/6काल भैरव ने काट दिया ब्रह्माजी का पांचवां मुख



काल भैरव के काशी में स्‍थापित होने के पीछे एक बहुत ही रोचक पौराण‍िक कथा है। एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच यह चर्चा छिड़ गई कि दोनों में बड़ा कौन है? चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिव बहुत क्रुद्ध हुए। उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। इसी कारण काल भैरव को शिव का अंश कहा जाता है। काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करनेवाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया।

2/6भैरव को लगा ब्रह्म हत्‍या का दोष



अब यह मुख उनके हाथ से अलग नहीं हो रहा था। तभी शिवजी प्रकट हुए। उन्‍होंने भैरव से कहा कि अब तुम्‍हें ब्रह्म हत्‍या का दोष लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्‍हें एक सामान्‍य व्‍यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा। जिस स्‍थान पर यह शीश तुम्‍हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्‍त हो जाओगे।

3/6ब्रह्म हत्‍या नामक कन्‍या भैरव के पीछे पड़ गई



शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए। उनके जाते ही शिवजी की प्रेरणा से एक कन्या प्रकट हुई। एक तेजस्‍वी कन्‍या, जो अपनी लंबी जीभ से कटोरे में रक्‍तपान कर रही थी। यह कन्‍या कोई और नहीं ब्रह्म हत्‍या थी। इसे शिवजी ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था।

4/6भैरव निकल पड़े तीनों लोक मुक्ति पाने के लिए




शिवजी के कहे अनुसार, भैरव ब्रह्म हत्‍या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोक की यात्रा कर रहे थे और वह कन्‍या भी उनका पीछा कर रही थी। फिर एक दिन जैसे ही भैरव बाबा ने काशी में प्रवेश किया कन्‍या पीछे छूट गई। शिवजी के आदेशानुसार काशी में इस कन्‍या का प्रवेश करना मना था।

5/6यहां छूटा भैरव के हाथ से ब्रह्म शीश




काशी शिव की नगरी है, जहां वह बाबा विश्वनाथ के रूप में नगर के राजा के तौर पर पूजे जाते हैं। यहां गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया और भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। काल भैरव के पाप मुक्त होते ही वहां शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया।

6/6काल भैरव के बिना अधूरे हैं बाबा विश्‍वनाथ के दर्शन



शिवजी ने काल भैरव को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे और इसी रूप में तुम्हारी युगों-युगों तक पूजा होगी। शिव प्रेरणा से जिस स्थान पर काल भैरव रह गए, बाद में वहां काल भैरव का मंदिर स्‍थापित कर दिया गया। काशी में मान्‍यता है कि भक्‍तों को बाबा विश्वनाथ के बाद काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य है। अन्‍यथा बाबा विश्वनाथ के दर्शन भी अधूरे मानेे जाते है। Contect-






कथनी और करनी में अंतर

* पण्डित की कहानी *
कहानी और करनी में अंतर 
✍️Edited by - पं आदर्श पांडेय शिवम्
                        -@sp
            श्री लक्ष्मीप्रपनाजीवार स्वामी जी महाराज
एक पंण्डित एक नदी किनारे रहता था। वह
इतना ज्ञानी था कि दूर और पास के कई पण्डित
उससे सलाह लेने आते थे। वे पण्डित पर आदर और सम्मान
की वर्षा करते थे। दुसरे किनारे पर एक
लक्ष्मी नाम की दूध
वाली रहती थी। उसका दिन
व्यस्त रहता था। वह सुबह जल्दी उठकर दूध
निकालती, अपने वृद्ध पिता के लिए भोजन
पकाती और उसके बाद दूध बाँटने बाहर निकल
पड़ती।
उसे एक नाव पर नदी पार
करनी पड़ती थी। एक दिन
पण्डित उसका इंतजार कर रहा था। आखिर वह आई तब वह
बोला-आह, लक्ष्मी तुम अन्त में आ
ही गई। मैं तुमाहरा प्रातः काल से इन्तजार कर
रहा था। मुझे कल से दूध सूर्योदय से पहले चाहिए।
अगली सुबह लक्ष्मी भोर शुरू होते
ही किनारे दौडी लेकिन नाव वाला देर
सुबह तक नहीं आया। लक्ष्मी ने नाव
वाले से जल्दी करने को का आग्रह किया क्योंकि उसे
जानकारी थी कि पण्डित दूध के लिए
इंतजार कर रहा होगा। पहुँचने पर पंडित ने शिकायत
की कि तुम दुबारा देर से अई ,क्या हुआ।
लक्ष्मी माफी माँगते हुए
बोली कि पण्डित जी, नाव वाला देर से
आया।
उस दिन पण्डित का मिजाज खराब था। वह चिल्लाया- बहाना मत
सुनाओ। तुमने मेरी इच्छा का आनादर करने
की हिम्मत कैसे की? तुम्हें
नहीं मालूम कि मैं कितना महान हूँ?
लक्ष्मी ने रोना शुरू किया लेकिन पंडित
शेखी बघारता रहा। क्या तुम
जानती हो मैं कितना विद्वान् हूँ? तुम केवल दूध
वाली हो, मैं सारी चीजें
जानता हूँ। वह नदी जीवन
नदी है। लोग हरि का नाम लेकर पार कर लेतें हैं।
लक्ष्मी ने पण्डित के शब्दों को बहुत
गंभीरता से लिया और अगले दिन समय पर आने
का वादा कर वहाँ से चली गयी। उसने
सोचा कि मैं पण्डित जी के कहे के अनुसार
हरि का नाम लेकर नदी पार कर
सकती हूँ। यह बात पण्डित जी ने
पहले क्यों नहीं कही।
अगले दिन लक्ष्मी, पण्डित के घर सूर्योदय से
पहले पहुँच गयी। पण्डित उसे देखकर
आश्चर्यचकित था क्योंकि उसने नाव वाले
को तो देखा ही नहीं। पण्डित
जी ने पूछा, आज तुमने नदी कैसे पार
की। लक्ष्मी मुस्कराई और
बोली ,आपही ने तो मुझे
रास्ता बताया था कि हरी का नाम लो और
नदी पार कर लो, तो मैंने वैसा ही किया।
" यह असम्भव है", पण्डित चिल्लाया और उसे से
नदी पार करने के लिए कहा। लक्ष्मी ने
दुबारा बगैर किसी मुश्किल के हरि का नाम गाते हुए
नदी पार कर ली। ऐसा करते वह
बिलकुल सुखी थी। पण्डित ने
हरि का नाम लेकर यही करने
की कोशिश की लेकिन उसने जैसे
ही अपने कपडे भीगने से बचाने
की कोशिश की वह नदी में
गिर पड़ा।
लक्ष्मी चकित थी। वह
बोली," वह पंडित जी, आप
हरि का बिलकुल चिन्तन नहीं कर रहे थे। आप
तो अपनी धोती के बारे में सोचने में व्यस्त
थे इसलिए काम नहीं बना। पण्डित,
लक्ष्मी की सच्ची भक्ति सेआश्चर्यचकित
हो गया और उसने माना कि उसका विश्वास, उसके अपने
खाली ज्ञान से ज्यादा शक्तिशाली था।
उसने सच्चाई से लक्ष्मी को आशीर्वाद
दिया।
अध्यात्मिक भाव
शिव बाबा उन लोगों को पण्डित कहते हैं जो ज्ञान को केवल
दोहराता रहते हैं लेकिन जीवन में
नहीं उतारते। हमें पण्डित की तरह
नहीं होना चाहिए। दूसरों को जो कहते हैं पहले
खुद वैसा बनना चाहिए। कथनी और
करनी में फर्क नहीं होना चाहिए।

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गो माता से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

             गो माता से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी । 
✍️Edited by- पंडित आदर्श पांडेय शिवम्
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🙏जय श्री कृष्ण 🙏

1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।
     
2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।

4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

6. गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।

7. गौ माता कि एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।

8. गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है।

9. गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।

10. गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है , उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।

11. एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।

12. गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।

13. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।

14. गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।

15. गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे।

16. गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।

17. जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।

18. स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।

19. गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।

20. काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।

21. गाय एक चलता फिरता मंदिर है । हमारे सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवता है ,हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते हैं ।

22. कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो तो गौ माता के कान में कहिये रूका हुआ काम बन जायेगा !

 23. गौ माता सर्व सुखों की दातार है ।

हे मां आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं ।

1.श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव ।।

2.रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीता राम।।
जय गाय माता की
जय श्री कृष्णा

।।जय जय श्री राम।।

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जाने मां कली का अवतार कैसे हुआ।।

जाने मां कली का अवतार कैसे हुआ।

शास्‍त्रों के अनुसार मां भगवती ने दुष्‍टों का अंत करने के लिए विकराल रूप धारण किया था जिन्‍हें मां काली के नाम से जाना जाता है. इनकी आराधना से मनुष्य के सभी भय दूर हो जाते हैं.

जानें, मां काली के उत्‍पन्‍न होने की कथा...
मां काली

                         
                          मां कली सोहार वाली

मां दुर्गा का विकराल रूप हैं मां काली और यह बात सब जातने हैं कि दुष्‍टों का संहार करने के लिए मां ने यह रूप धरा था. शास्‍त्रों में मां के इस रूप को धारण करने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं और उनका व्‍याखान भी वहां मिलता है.
आइए जानें मां के इस भयंकर रूप के पीछे की कथा:
एक बार दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न किया. उनके द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ब्राह्मणों को प्रलय की अग्नि के समान दुःख देने लगा. उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया. सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु के धाम पहुंचे. ब्रह्मा जी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री दवारा मारा जायेगा. तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर दुष्ट दारुक से लड़ने गए. परतु वह दैत्य अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को परास्त कर भगा दिया.
ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया. भगवान शिव ने उनकी बात सुन मां पार्वती की ओर देखा और कहा हे कल्याणी जगत के हित के लिए और दुष्ट दारुक के वध के लिए में तुमसे प्रार्थना करता हुं. यह सुन मां पार्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश कराया. जिसे मां भगवती के माया से इन्द्र आदि देवता और ब्रह्मा नहीं देख पाए उन्होंने देवी को शिव के पास बैठे देखा.
मां भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा. विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ. भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला. उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली मां काली उत्तपन हुई. मां काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी. कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल व नाना प्रकार के आभूषण व वस्त्रों से वह सुशोभित थी. मां काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे.
मां काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गई. मां के क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने लगा. उनके क्रोध से संसार को जलते देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया. शिव श्मशान में पहुंचे और वहां लेट कर रोने लगे. जब मां काली ने शिवरूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप से मोहित हो गई. वातसल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी. भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध का भी पान कर लिया. उनके उस क्रोध से आठ मूर्ति हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई.
शिवजी द्वारा मां काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई. देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया. होश में आने पर मां काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नाचने लगी जिस कारण उन्हें योगिनी भी कहा गया

 जय मा काली सोनहर वाली द्वारा संपादित किया गया है।
                                                      🙏  धन्याबा🙏
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बिल्वपत्र का महत्व✍️

🙏 ॐ नमः शिवाय🙏




बिल्वपत्र  का महत्व✍️

बेलपत्र को संस्कृत में 'बिल्वपत्र' कहा जाता है.

यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है. ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है. पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं.

हमारे धर्मशास्त्रों में ऐसे निर्देश दिए गए हैं, जिससे धर्म का पालन करते हुए पूरी तरह प्रकृति की रक्षा भी हो सके. यही वजह है कि देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले फूल और पत्र को तोड़ने से जुड़े कुछ नियम बनाए गए हैं.

बेलपत्र तोड़ने के नियम:

1. चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथ‍ियों को, सं‍क्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र न तोड़ें.

2. बेलपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथ‍ियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए.

3. शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।

शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित्।। (स्कंदपुराण)

4. टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे.

5. बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.

 श‍िवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र:

1. महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए.

2. बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.

3. बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं. ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं.

4. अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए. उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं.

5. श‍िवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए.

 शिव स्तुति मंत्र
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।


Omkareshwar jyotirlinga
                      Baidnath jyotirlinga
Kashi Vishwanath jyotirlinga

Maundeshwari

मां मुंडेश्वरी धाम परिसर में आयोजित दो दिवसीय मुंडेश्वरी महोत्सव का भव्य आगाज रविवार की शाम होगा।...  मां मुंडेश्वरी धाम परिसर में आयोजित...