🍎🍎जय श्री सीताराम जी 🍎🍎
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(पिछली पोस्ट से आगे)
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
श्री हनुमान जी वीर नहीं महावीर हैं। वज्र की तरह जिनकी दिव्य देह है। उन बजरंगबली में अमित विक्रम, पराक्रम है और वे कुमति का हरण करने वाले तथा सुमति का समर्थन करने वाले हैं।
कुमति को हटाना और सुमति को बढ़ाना श्री हनुमान जी का ही कार्य है । पर आप पूछेंगे कि यह सुमति और कुमति कहाँ रहती हैं? तो उत्तर है -- विभीषण जी ने कहा है।
सुमति कुमति सबके उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।।
सुमति और कुमति सबके हृदय में रहते हैं। यह अद्भुत संकेत है । किसी किसी के हृदय में रहते हों, ऐसा नहीं है। सबके उर रहहीं और श्री तुलसीदास जी कहते हैं --- मेरे द्वारा जो यह कहा गया है, यही वेद, शास्त्र और अनुभवी पुरुषों ने कहा है। नाथ पुरान निगम अस कहहीं। यह श्रुति सम्मत है, पुराण सम्मत है । सबके हृदय में सुमति और कुमति का निवास है।
यह कह देने से एक लाभ यह होता है कि व्यक्ति हीनभाव से नहीं भरता कि मुझमें भी कुमति आ गई । वह सोचता है कि सबके साथ ऐसा होता है तो मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । एक तो यह लाभ, और दूसरा, हीन भाव तो रहेगा पर अभिमान नहीं होगा कि कुमति दूसरे में ही रहती होगी, मुझमें नहीं रहती। और कहा जा रहा है -- सबके उर रहहीं। इसीलिए यह सुमति और कुमति सबके हृदय में हैं। इस दृष्टि से सब समान हैं, पर थोड़ा और सूक्ष्म ढंग से हम लोग विवेचन करें कि सबके हृदय में सुमति और कुमति रहते हैं। तो कभी सुमति प्रबल होती होगी, कभी कुमति प्रबल होती होगी। जैसे कभी रात आती है कभी दिन आता है ।
काल कर्म वश होहिं गोसाईं।
बरबस रात दिवस की नाईं।।
तो हम यह कैसे जानें कि अभी हमारे हृदय में कुमति प्रधान है या सुमति प्रधान है। यह जानें कैसे? यह तो ठीक है कि सुमति कुमति सबके हृदय में रहते हैं, पर हम जानेंगे कैसे? बड़ा सुंदर उत्तर है। विभीषण जी ने कहा -- रावण !
तव उर कुमति बसी विपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।
कुमति हमारे हृदय में कब प्रधान रूप लेकर आ गई है? कैसे जानेंगे? तो इसका उत्तर है कि अपने हितैषी जब शत्रु लगने लगें और अनहित करने वाले मित्र लगने लगें -- हित अनहित मानहु रिपु प्रीता। जो हमारे हित की बात कह रहे हैं, जो हमारे हितैषी हैं, वे हमें शत्रु लगने लगें। और जो हमारे जीवन को नष्ट करने वाले हैं वे हमें प्रिय लगने लगें तो समझ लो कुमति आ गई ।
अब ऐसी दशा में आदमी सही निर्णय नहीं कर पाता। वह अपने साधना पथ से विमुख हो जाता है, भटक जाता है । तो ऐसे भटकाव के क्षण अगर जीवन में आये, तो किसका आश्रय लें?
कुमति आ गई और कुमति के कारण हम समझकर भी नहीं समझ पाते ,क्योंकि प्रभाव कुमति का है । हमारे गुरुदेव कहते थे कि --
जब आते अच्छे दिन तो अच्छी बात सुहाती।
नाहीं तो समझाने पर भी नहीं समझ में आती।।
अच्छा बोलो, विभीषण जी ने कितना समझाया रावण को? अंत में उन्होंने कहा कि मेरा उपदेश तुम पर काम नहीं कर रहा। कहा क्यों? कहा -- औषधि रोग को मिटा सकती है, मौत को नहीं । तो यह उपदेश की औषधि काम तो करती है, लेकिन औषधि काम करती है रोग पर, मृत्यु पर नहीं ।
हित मत तोहि न लागत कैसे।
काल विवश कहँ भेषज जैसे।।
जो काल के वश में है, उस पर दवा काम नहीं करती। इसी तरह कुमति का कुप्रभाव कुसमय के कारण जिसके मन पर हो, उस पर उपदेश की औषधि काम नहीं करती।
रावण को समझाने वाले हार गये, क्योंकि- - तव उर कुमति बसी बिपरीता। तब हम लोगों को निराशा हाथ लगती है कि यदि कुमति प्रबल हो गई हमारे हृदय में, तब तो हमें कोई भी सुखी नहीं कर सकेगा।
पर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि निश्चिंत रहो, अगर ऐसी दशा भी आ जाये तो एक हैं जिनका आश्रय लेने से कुमति हट जायेगी और सुमति की स्थापना हो जायेगी। कहा -- ऐसा पराक्रम किसका है? तब कहा ---
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
वे कुमति का निवारण करके सुमति की स्थापना कर देते हैं। तो यह असम्भव काम हनुमान जी के द्वारा सम्भव हो जाता है? -•••••हाँ।
(क्रमशः)
(स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज)
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महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
श्री हनुमान जी वीर नहीं महावीर हैं। वज्र की तरह जिनकी दिव्य देह है। उन बजरंगबली में अमित विक्रम, पराक्रम है और वे कुमति का हरण करने वाले तथा सुमति का समर्थन करने वाले हैं।
कुमति को हटाना और सुमति को बढ़ाना श्री हनुमान जी का ही कार्य है । पर आप पूछेंगे कि यह सुमति और कुमति कहाँ रहती हैं? तो उत्तर है -- विभीषण जी ने कहा है।
सुमति कुमति सबके उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं ।।
सुमति और कुमति सबके हृदय में रहते हैं। यह अद्भुत संकेत है । किसी किसी के हृदय में रहते हों, ऐसा नहीं है। सबके उर रहहीं और श्री तुलसीदास जी कहते हैं --- मेरे द्वारा जो यह कहा गया है, यही वेद, शास्त्र और अनुभवी पुरुषों ने कहा है। नाथ पुरान निगम अस कहहीं। यह श्रुति सम्मत है, पुराण सम्मत है । सबके हृदय में सुमति और कुमति का निवास है।
यह कह देने से एक लाभ यह होता है कि व्यक्ति हीनभाव से नहीं भरता कि मुझमें भी कुमति आ गई । वह सोचता है कि सबके साथ ऐसा होता है तो मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । एक तो यह लाभ, और दूसरा, हीन भाव तो रहेगा पर अभिमान नहीं होगा कि कुमति दूसरे में ही रहती होगी, मुझमें नहीं रहती। और कहा जा रहा है -- सबके उर रहहीं। इसीलिए यह सुमति और कुमति सबके हृदय में हैं। इस दृष्टि से सब समान हैं, पर थोड़ा और सूक्ष्म ढंग से हम लोग विवेचन करें कि सबके हृदय में सुमति और कुमति रहते हैं। तो कभी सुमति प्रबल होती होगी, कभी कुमति प्रबल होती होगी। जैसे कभी रात आती है कभी दिन आता है ।
काल कर्म वश होहिं गोसाईं।
बरबस रात दिवस की नाईं।।
तो हम यह कैसे जानें कि अभी हमारे हृदय में कुमति प्रधान है या सुमति प्रधान है। यह जानें कैसे? यह तो ठीक है कि सुमति कुमति सबके हृदय में रहते हैं, पर हम जानेंगे कैसे? बड़ा सुंदर उत्तर है। विभीषण जी ने कहा -- रावण !
तव उर कुमति बसी विपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।
कुमति हमारे हृदय में कब प्रधान रूप लेकर आ गई है? कैसे जानेंगे? तो इसका उत्तर है कि अपने हितैषी जब शत्रु लगने लगें और अनहित करने वाले मित्र लगने लगें -- हित अनहित मानहु रिपु प्रीता। जो हमारे हित की बात कह रहे हैं, जो हमारे हितैषी हैं, वे हमें शत्रु लगने लगें। और जो हमारे जीवन को नष्ट करने वाले हैं वे हमें प्रिय लगने लगें तो समझ लो कुमति आ गई ।
अब ऐसी दशा में आदमी सही निर्णय नहीं कर पाता। वह अपने साधना पथ से विमुख हो जाता है, भटक जाता है । तो ऐसे भटकाव के क्षण अगर जीवन में आये, तो किसका आश्रय लें?
कुमति आ गई और कुमति के कारण हम समझकर भी नहीं समझ पाते ,क्योंकि प्रभाव कुमति का है । हमारे गुरुदेव कहते थे कि --
जब आते अच्छे दिन तो अच्छी बात सुहाती।
नाहीं तो समझाने पर भी नहीं समझ में आती।।
अच्छा बोलो, विभीषण जी ने कितना समझाया रावण को? अंत में उन्होंने कहा कि मेरा उपदेश तुम पर काम नहीं कर रहा। कहा क्यों? कहा -- औषधि रोग को मिटा सकती है, मौत को नहीं । तो यह उपदेश की औषधि काम तो करती है, लेकिन औषधि काम करती है रोग पर, मृत्यु पर नहीं ।
हित मत तोहि न लागत कैसे।
काल विवश कहँ भेषज जैसे।।
जो काल के वश में है, उस पर दवा काम नहीं करती। इसी तरह कुमति का कुप्रभाव कुसमय के कारण जिसके मन पर हो, उस पर उपदेश की औषधि काम नहीं करती।
रावण को समझाने वाले हार गये, क्योंकि- - तव उर कुमति बसी बिपरीता। तब हम लोगों को निराशा हाथ लगती है कि यदि कुमति प्रबल हो गई हमारे हृदय में, तब तो हमें कोई भी सुखी नहीं कर सकेगा।
पर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि निश्चिंत रहो, अगर ऐसी दशा भी आ जाये तो एक हैं जिनका आश्रय लेने से कुमति हट जायेगी और सुमति की स्थापना हो जायेगी। कहा -- ऐसा पराक्रम किसका है? तब कहा ---
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
वे कुमति का निवारण करके सुमति की स्थापना कर देते हैं। तो यह असम्भव काम हनुमान जी के द्वारा सम्भव हो जाता है? -•••••हाँ।
(क्रमशः)
(स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज)